ऐसी महिला सरपंच जिनके कई ऐसे फैसले थे, जिन्हें सुन और देख सभी चौंक जाते थे। गांव में सड़क से लेकर दूसरी सुविधाओं के लिए बजट नहीं मिला तो खुद के रुपए खर्च कर दिए। यहां तक की सरपंच बनने के लिए सरकारी नौकरी भी छोड़ दी।
यह कहानी है 90 के दशक में महिला सरपंच बनी कांता आहूजा की। अलवर के बहादरपुर ग्राम पंचायत से 1988 में से सरपंच बनी थी। कांता ने बीए बीएसटीसी सहित कई डिग्री कर रखी हैं। अभी वे 82 साल की है। लेकिन अपने सरपंच के किस्से बड़े जोश के साथ सुनाती है। गांव में एक बार सरंपच बनाने को लेकर कुछ लोग एकत्रित हुए और किसी एक जने को सरपंच बनाने का फैसला ले लिया। इस पर कांता ने आवाज उठाई थी कि कई हजार लोगों का फैसला चंद लोग कैसे ले सकते हैं। इसके बाद गांव में चर्चा में आई कांता आहूजा सामाजिक कार्यों में लगी रही। वर्ष 1988 में खुद गांव की सरपंच बन गई।
दूल्हे की शादी बाइक से कराने की जिद पर अड़ गई
सरपंच आहूजा के कई फैसले चर्चा में रहने लगे। ऐसा ही एक किस्सा उन्होंने बताया कि 1988 में जब वह सरपंच थी तो पड़ोसी गांव में एक परिवार दहेज की जिद पर अड़ गया। वह कहने लगे कि मोटरसाइकिल देंगे तो ही दुल्हन को ले जाएंगे। मामला प्रशासन तक पहुंचा और पंचायत भी हुई। लेकिन कोई फैसला नहीं हो पाया। उन्होंने बताया कि कुछ लोग मेरे पास आए और मुझे कहा कि आप महिला होकर क्या कर सकती हो। इसके बाद परिवार को गांव बुलाया। दूल्हे को कमरे में ले गई और कहा कि तुझे मोटरसाइकिल चाहिए तो शादी भी मोटरसाइकिल से करनी पड़ेगी। मैं मोटरसाइकिल मंगाती हूं। अब तेरी शादी किसी लड़की से नहीं मोटरसाइकिल से होगी। इस पर परिवार को समझ आ गया कि उन्हें क्या करना है। राजी-खुशी शादी हुई।
खुद का पैसा लगाकर सड़क बनाई
आहूजा ने बताया कि 90 के दशक में ग्राम पंचायतों तक बहुत कम पैसा मिलता था। उन्होंने बताया कि कि उनके पास के गांव की करीब सवा दो किलोमीटर से लम्बी सड़क के लिए सरकार से 70 हजार रुपए का बजट मिला था। इस राशि में पूरी सड़क नहीं बन पाई तो खुद के खर्चे से अधूरी सड़क को पूरा किया। गरीब परिवारों की बेटियों का पढ़ाने, रोजगार से जोड़ने का काम वे कई दशकों से करती आ रही है। आज भी खुद के निजी स्कूलों में गांव की बहू-बेटियों को जरूरत के अनुसार निशुल्क पढ़ाती हैं।
मैं चाहती हूं महिलाएं खुद फैसला लें
आहूजा ने कहा कि यह सही है कि आज भी महिलाओं की जगह उनके पति राजनीति करते हैं। ऐसा करके महिलाओं को कमजोर करके रखा है। मैं कहती हूं कि महिला घर संभाल सकती हैं। परिवार चला सकती हैं। तो बाहर के सब काम भी कर सकती हैं। एक महिला चाहे तो चंडी बन सकती हैं। नहीं चाहे तो कुछ भी नहीं है। महिलाओं को अपने हक के लिए लड़ना आना चाहिए। जब जिम्मेदारी मिले तो उसे सीख कर पूरा भी करना चाहिए