गहलोत सरकार में पिछले दिनों खाली पड़े बोर्ड, निगमों और आयोगों में 132 राजनीतिक नियुक्तियां दी गईं। इनमें केवल 16 महिलाएं शामिल हैं। 47 बोर्ड निगमों में 41 अध्यक्ष बनाए गए थे। उनमें केवल 4 बोर्ड-निगमों में ही महिलाओं को चेयरपर्सन बनाया गया है। 24 उपाध्यक्षों में केवल 5 पर ही महिलाओं को मौका दिया गया है। मेंबर पदों पर 67 में से केवल 7 महिलाओं को नियुक्त किया है। ऐसे में राजनीतिक नियुक्तियों में भी मर्दों का ही दबदबा रहा है, जबकि कांग्रेस के कई नेता महिलाओं को अधिक से अधिक भागीदारी देने की वकालत करते रहे हैं।
गहलोत सरकार ने जिन 16 पदों पर महिलाओं को नियुक्ति दी है। उनमें से महिला आयोग और समाज कल्याण बोर्ड में अध्यक्ष से लेकर मेंबर पदों पर महिलाएं ही नियुक्त हो सकती हैं। ऐसे में महिला आयोग और समाज कल्याण बोर्ड में अध्यक्ष व मेंबर पर महिलाओं की नियुक्ति संवैधानिक बाध्यता है। 16 में से 8 पदों पर तो महिलाओं के अलावा किसी की नियुक्ति की ही नहीं जा सकती थी। इन 8 पदों को निकाल दिया जाए तो फिर पीछे 8 ही पद बचते हैं
लोकसभा-विधानसभा में 33 फीसदी महिला आरक्षण की वकालत
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कांग्रेस के कई नेता लोकसभा-विधानसभा सीटों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण की वकालत करते रहे हैं। सोनिया गांधी के निर्देशों के बाद गहलोत सरकार ने लोकसभा- विधानसभा में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने को लेकर प्रस्ताव भेजा था। 33 फीसदी महिला आरक्षण की पैरवी के बीच सरकार की राजनीतिक नियुक्तियों में महिलाओं को उसका आधा हिस्सा भी नहीं मिल रहा।
ज्योति बोली- महिलाओं को मिले पूरी भागीदारी
जयपुर की पूर्व मेयर और व्यापार कल्याण बोर्ड सदस्य कांग्रेस नेता ज्योति खंडेलवाल ने कहा- महिलाओं की भागीदारी तो हर स्तर पर बढ़नी ही चाहिए। लोकसभा और विधानसभा सीटों पर तो महिलाओं को आरक्षण मिलने में वक्त लगेगा, लेकिन अभी जो अधिकार क्षेत्र में है वहां तो पूरी भागीदारी मिले। महिलाओं को अपने हक के लिए अब भी हर स्तर पर आवाज उठाने की आवश्यकता है।